5 अगस्त, 2020 का दिन Ayodhya Ram Mandir के इतिहास (History) में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।
1528 से 2020 तक, 492 वर्षों के इतिहास ने कई मोड़ लिए।
लेकिन आख़िरकार अब हमारा राम मंदिर बनने जा रहा है,
और हमें आशा है की बहुत ही जल्दी ही राम मंदिर बन कर तैयार भी हो जायेगा।
तो दोस्तों आज हम जानेंगे राम मंदिर से जुडी कुछ पुरानी बातें जिन्हें हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।
Ayodhya Ram Mandir का इतिहास
अयोध्या का शाब्दिक अर्थ है अजेय। अयोध्या पहले वैष्णव पूजा का केंद्र था।
गुप्त वंश ने पाँचवीं शताब्दी में यहाँ शासन किया था। यह शहर सातवीं शताब्दी में निर्जन हो गया था।
अयोध्या का संबंध राम और सूर्यवंश के आख्यान से है।
अयोध्या हिंदुओं के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है, जो कि भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्राचीन धार्मिक शहर है।
यह शहर पवित्र सरयू नदी के तट पर स्थित है।
रामायण के अनुसार, अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। अयोध्या हिंदुओं के 7 पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है।
इसमें अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, अवंतिका और द्वारका शामिल हैं।
माना जाता है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था।
5 अगस्त, 2020 का दिन राम मंदिर के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।
1528 से 2020 तक, 492 वर्षों के इतिहास ने कई मोड़ लिए।
विशेषकर 9 नवंबर 2019 का दिन जब 5-जजों की संवैधानिक पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
अयोध्या भूमि विवाद मामला देश के सबसे लंबे समय तक चलने वाले मामलों में से एक था।
हिंदू संगठनों ने 1813 में पहली बार दावा किया था कि अयोध्या में राम मंदिर था और बाबर ने राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनावाई थी।
72 साल बाद, मामला पहली बार एक अदालत में पहुंचा। (history of Ayodhya Ram mandir)
1885 में, महंत रघुबर दास ने फैजाबाद की जिला अदालत में राम चौपड़ा पर एक छतरी लगाने के लिए याचिका दायर की लेकिन उनकी याचिका को ठुकराए दिया गया।
134 वर्षों से तीन न्यायालयों में इस विवाद से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई के बाद मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंचा।
अयोध्या में मस्जिद कब बनी ?
कई इतिहासकारों का इस पर अलग-अलग विचार है।
अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार, बाबर पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराने के बाद भारत आया था।
और बाबर के आदेश पर, मीर बाकी ने 1528 में अयोध्या में एक मस्जिद का निर्माण करवाया।
और उसका नाम बाबर के नाम पर बाबरी मस्जिद रखा गया था।
हिंदू संगठनों ने 1813 में पहली बार दावा किया था कि अयोध्या में राम मंदिर था और बाबर ने राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनावाई थी।
फैजाबाद में ब्रिटिश अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि मस्जिद में हिंदू मंदिरों जैसी कलाकृतियां मिली थीं।
हिंदुओं के दावे से, विवादित भूमि में नमाज के साथ पूजा शुरू हुई।
1853 में पहली बार अयोध्या में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के नेतृत्व में सामुदायिक हिंसा भड़की।
इसके बाद भी, 1855 तक, दोनों पक्षों ने एक ही स्थान पर पूजा करना और प्रार्थना करना जारी रखा।
1855 के बाद, मुसलमानों को मस्जिद में प्रवेश करने की अनुमति दी गई थी,
लेकिन हिंदुओं को प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी।
इस तरह, हिंदुओं ने मंच की मुख्य शाखा से 150 फीट की दूरी पर बनी मंच शाखा में पूजा शुरू की जिसे हम राम चबूतरे के नाम से भी जानते है।
1859 में, ब्रिटिश सरकार ने विवादित जगह पर एक तार वाली बाड़ लगवा दी।
1885-1987 तक Ayodhya Ram Mandir विवाद
1885: इस मामले को पहली बार अदालत में ले जाया गया।
फैजाबाद जिला अदालत में, महंत रघुबर दास ने राम मंच पर एक छतरी लगाने के लिए आवेदन किया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
1934: अयोध्या में दंगे भड़के। बाबरी मस्जिद का एक हिस्सा नष्ट हो गया था। विवादित जगह पर नमाज बंद थी।
1949: मुस्लिम पक्ष का दावा है कि हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद के मध्य गुंबद के नीचे रामलला की मूर्ति स्थापित की।
सात दिन बाद, फैजाबाद अदालत ने बाबरी मस्जिद को विवादित भूमि घोषित किया और मुख्य द्वार बंद कर दिया गया।
1950: महासभा के हिंदू वकील गोपाल विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा करने के अधिकार का अनुरोध किया।
1959: निर्मोही अखाड़ा विवादित स्थल के स्वामित्व का दावा करता है।
1961: सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मूर्ति स्थापित करने केखिलाफ अदालत में याचिका लगाई और मस्जिद और आसपास की भूमि पर अपना अधिकार जताया।
1986: फैजाबाद अदालत ने बाबरी मस्जिद का ताला खोलने का आदेश दिया।
1987: पूरा मामला फैजाबाद जिला न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
1989-2020 तक Ayodhya Ram Mandir विवाद
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1989 में विवादित स्थान पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए कहा।
इस बीच, 1992 में, हजारों कारसेवक अयोध्या पहुंचे और विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया। इस मामले में, एक अलग सुनवाई की जा रही है।
10 साल बाद, यानी 2002 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित ढांचे की भूमि के स्वामित्व के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की और 2010 में फैसला सुनाया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2: 1 का फैसला सुनाया और विवादित स्थल को समान रूप से सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला तीन भागों में बांट दिया।
2011 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को निलंबित कर दिया गया,
और 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद से संबंधित सभी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
6 अगस्त, 2019 तक, विवाद को लगातार 40 दिनों तक सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की गई। (history of Ayodhya Ram mandir)
16 अक्टूबर, 2019 को, हिंदू-मुस्लिम पक्ष की दलीलें सुनने के बाद, पांच-सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने अपना निर्णय सुरक्षित रखा।
और 9 नवंबर 2019 का दिन जब 5-जजों की संवैधानिक पीठ ने राम मंदिर के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
और 5 अगस्त 2020 के दिन राम मंदिर की नींव रख दी गई है और अब बहुत जल्द राम मंदिर बन के तैयार भी हो जायेगा।
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